सलाम ज़िन्दगी सलाम जिंदादिली
इक पत्थर की भी तक़दीर संवर सकती है, शर्त यह कि सलीक़े से तराशा जाए
Saturday, September 29, 2018
सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो
Tuesday, August 15, 2017
वतन के शहीदों को उनकी ज़िंदादिली के लिए सलाम
हम बुलबुले है इसकी ये गुलसिता हमारा ॥
समझो वही हमे भी दिल है जहाँ हमारा ॥
वो संतरी हमारा वो पासबा हमारा ॥
गुलशन है जिनके दम से रश्क-ए-जना हमारा ॥
उतरा तेरे किनारे जब कारवाँ हमारा ॥
हिन्दी है हम वतन है हिन्दोस्तान हमारा ॥
अब तक मगर है बांकी नामो-निशान हमारा ॥
सदियो रहा है दुश्मन दौर-ए-जमान हमारा ॥
मालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहा हमारा ॥
Friday, June 10, 2011
हौसले की उड़ान
फ़िराकजिंदादिली की इस कड़ी में हम हाजिर हैं एक और जिंदादिल इंसान की कहानी लेकर.
Wednesday, September 9, 2009
हादसे की शिकार जाने बचाने की मुहिम
Tuesday, June 2, 2009
एक चुनाव ऐसा भी
Sunday, April 26, 2009
वतन की याद आई तो छोड़ आये कैलिफोर्निया
वहीँ पर उन्होंने गामा बीटा रेज़ मापने वाले प्रोजेक्ट टाइप इस्पिकोस्कोपे का अविष्कार किया. वतन की याद आई तो प्रोफ़ेसर मुनीर तीसरे टर्न में अध्यापन का प्रस्ताव ठुकराकर वापस लौट आये और AMU में हेड ऑफ मेकेनिकल इंजीनियरिंग के हेड बने.
Sunday, March 1, 2009
कराटे का जूनून ले गया अमेरिका
जूनून में इन्सान क्या नहीं कर गुज़रता. इसके लिए वह कुछ भी करने से पीछे नहीं हटता. मोहम्मद हनीफ खान भी उन्हीं जुनूनियों में से एक हैं जिन्होंने जुडो व् बूडो कराटे का पूरा इल्म हासिल करने के लिए अमेरिका तक का सफ़र तय कर डाला। यह दीगर है कि इस मुकाम तक पहुँचने के लिए उन्हें अमेरिका के एक होटल तक में काम करना पड़ा.
वह शाहजहांपुर के रहने वाले हैं उम्र ३६ साल है और ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं। सिर्फ ८वी पास हैं. वह बचपन था जब उनके हाथ पैर चलने लगे थे और जिस्म को फौलादी बनाने में वह दिलचस्पी रखते थे। फ़क़त १४ साल की उम्र में कराटे सीखा और उस्ताद थे मुंबई के मुहम्मद अली। इसके बाद दिल्ली रहकर ५ साल तक जुडो सीखा और पेट भरने के लिए दिल्ली में ही चुनरी बेचीं और साइकल मिस्त्री के पास भी काम किया और फिर स्यूडो कराटे सीखा और ब्लैक बेल्ट पा लेने के बाद बॉडी बिल्डिंग का अभ्यास किया।सीखने के बाद उन्होंने लगभग ३ हज़ार लोगों को दिल्ली में हुनर सिखाया और खुद सीखने के लिए अमेरिका भी गए. अंग्रेजी न जानने के कारण उन्हें वहां बहुत दिक्क़त आई लेकिन वहां रह रहे भारतियों ने उनकी बहुत मदद की. वह बताते हैं कि "वर्ल्ड स्यूडो कराटे ओर्गानिज़शन" के बैनर तले उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला. ट्रेनर अंग्रेजी में बोलते थे उन्हें बहुत दिक्क़त आती थी इसके लिए उन्होंने कुछ शब्द रट रखे थे. उन्होंने वहां पर भी बच्चों को सिखाने का काम भी किया। अमेरिका में ५ साल रहे और ब्लैक बेल्ट लेकर ही लौटे जिसके लिए उन्हें एक होटल में भी कम करना पड़ा.
वह चाहते हैं कि जो परेशानियाँ उन्होंने उठाईं जुडो काराटे सीखें में वह दूसरो को न उठाना पड़े इसके लिए उन्होंने भारत में ही एक जुडो कराटे स्कूल भी खोला है.
कौन कहता है के आसमा में सुराख़ हो नहीं सकता
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो