Saturday, September 29, 2018

सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो

सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो 
हम तुम जंगल में जा रहे हो 
और शेर आ जाए 
शेर से कहूंगी मैं 
तुम्हें छोड़ दे मुझे खा जाए 

फिल्म 'Bobby' के गीत की इन लाइनों को सच कर दिखाया पीलीभीत के ग्राम रायपुर की रहने वाली राजकौर ने.

दरअसल यह कहानी उस औरत की है, उस हिंदुस्तानी औरत की जिसे कमज़ोर कहा जाता है जबकि वक्त आने पर वह फौलाद में तब्दील हो जाती है.उसे जिंदगी के हर मैदान में दूसरों के मुकाबले कमतर आंका गया, लेकिन उसे जब जब मौका मिला उसने अपने आप को साबित किया. कभी रानी लक्ष्मी बाई की शक्ल में अंग्रेजों से लोहा लिया तो कभी भिखई जी कामा बनकर भारत की पहली महिला क्रांतिकारी होने का गौरव हासिल किया. कभी मुख्तारन माई बन कर समाज सेवा की, तो कभी मलाला यूसुफजई की शक्ल में आतंकवादियों से जा भिड़ी. खुद की परवाह न करते हुए कभी अपना घर बचाया है, कभी अपना शहर बचाया है तो कभी अपना देश बचाया है. आज की कहानी है उत्तर प्रदेश के एक छोटे से जिले पीलीभीत के गांव रायपुर में रहने वाली राजकौर की.

जब यह दोनों एक रात जंगल के किनारे अपना काम कर रहे थे, तब अचानक शेर आ गया. उसने राजकौर के पति रंजीत पर हमला बोल दिया। राजकौर ने जो अपने पति को शेर के मुंह में देखा, तो जैसे उसने शेर से कहा -- छोड़ दे मेरे सुहाग को, हिम्मत है तो मुझ से मुकाबला कर और पलक झपकते ही उसने लाठी से शेर पर प्रहार शुरू कर दिया। अचानक लाठी के वार से बौखलाए शेर ने रंजीत को तो छोड़ दिया और राजकौर के सामने आ गया. वह एक लम्हा शेर हमलावर है और सामने एक कमजोर औरत. फिर राजकौर ने शेर के सर पर लाठियां बरसाना शुरू कर दी. वक़्त के उस छोटे से हिस्से में जिंदगी और मौत की कितनी शदीद जंग. एक तरफ ताकतवर शेर दूसरी तरफ एक कमजोर औरत. कसमे वादे प्यार वफा सब बातें नहीं थीं. निभाने का वक्त आ गया था. जंग जारी थी. वार पर वार उस औरत ने शेर को संभलने  का मौका ही नहीं दिया। दो परछाइयां भिड़ गईं। लाठी, बिजली बन कर शेर के किस हिस्से पर गिर रही थी कुछ पता नहीं था. हिम्मत करके घायल रंजीत भी उठ गया और शेर पर लाठियां बरसाने लगा. फिर राजकौर का भाई भी आ गया और तीनों के लाठियों के वार से शेर जान बचा कर भागा। जब मरना ही है तो लड़ कर क्यों न मरें।  कर्म करो गीता का भी तो संदेश यही है.

सुहाग पर आंच आने पर किस तरह वह बिजली बन जाती है. अगर उस पल राजकौर ने लाठी उठाने का फैसला न लिया होता तो सब कुछ ख़त्म हो गया होता और शायद वह भी खत्म हो गई होती। राजकौर की हिम्मत को सलाम, उसकी बहादुरी को सलाम, उसकी वफ़ा को सलाम, जिंदगी और मौत की जंग के उस लम्हे को सलाम, उसके उस फैसले को सलाम, उसकी जिंदगी जीने के जज्बे को सलाम, उसके ज़िन्दगी जीने की उस अदा को सलाम, उसकी पतिव्रता को सलाम।   

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