
कराटे का जूनून ले गया अमेरिका
जूनून में इन्सान क्या नहीं कर गुज़रता. इसके लिए वह कुछ भी करने से पीछे नहीं हटता. मोहम्मद हनीफ खान भी उन्हीं जुनूनियों में से एक हैं जिन्होंने जुडो व् बूडो कराटे का पूरा इल्म हासिल करने के लिए अमेरिका तक का सफ़र तय कर डाला। यह दीगर है कि इस मुकाम तक पहुँचने के लिए उन्हें अमेरिका के एक होटल तक में काम करना पड़ा.
वह शाहजहांपुर के रहने वाले हैं उम्र ३६ साल है और ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं। सिर्फ ८वी पास हैं. वह बचपन था जब उनके हाथ पैर चलने लगे थे और जिस्म को फौलादी बनाने में वह दिलचस्पी रखते थे। फ़क़त १४ साल की उम्र में कराटे सीखा और उस्ताद थे मुंबई के मुहम्मद अली। इसके बाद दिल्ली रहकर ५ साल तक जुडो सीखा और पेट भरने के लिए दिल्ली में ही चुनरी बेचीं और साइकल मिस्त्री के पास भी काम किया और फिर स्यूडो कराटे सीखा और ब्लैक बेल्ट पा लेने के बाद बॉडी बिल्डिंग का अभ्यास किया।सीखने के बाद उन्होंने लगभग ३ हज़ार लोगों को दिल्ली में हुनर सिखाया और खुद सीखने के लिए अमेरिका भी गए. अंग्रेजी न जानने के कारण उन्हें वहां बहुत दिक्क़त आई लेकिन वहां रह रहे भारतियों ने उनकी बहुत मदद की. वह बताते हैं कि "वर्ल्ड स्यूडो कराटे ओर्गानिज़शन" के बैनर तले उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला. ट्रेनर अंग्रेजी में बोलते थे उन्हें बहुत दिक्क़त आती थी इसके लिए उन्होंने कुछ शब्द रट रखे थे. उन्होंने वहां पर भी बच्चों को सिखाने का काम भी किया। अमेरिका में ५ साल रहे और ब्लैक बेल्ट लेकर ही लौटे जिसके लिए उन्हें एक होटल में भी कम करना पड़ा.
वह चाहते हैं कि जो परेशानियाँ उन्होंने उठाईं जुडो काराटे सीखें में वह दूसरो को न उठाना पड़े इसके लिए उन्होंने भारत में ही एक जुडो कराटे स्कूल भी खोला है.
कौन कहता है के आसमा में सुराख़ हो नहीं सकता
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो
gazab ki kahani hai
ReplyDeletemain aik bar phir faraz ki shukraguzar hun k usne aik bahtareen waqya bataya zindagi me junon se related
ReplyDeleteshukriya doston
ReplyDeleteकौन कहता है के आसमा में सुराख़ हो नहीं सकता
ReplyDeleteएक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो
bilkul sachhi abhivyakti
दिल में हिम्मत हो तो सब काम आसान हो जाते हैं.
ReplyDeleteबधाई
वाह... आपकी प्रस्तुति को नमन करता हूं..
ReplyDeleteकौन कहता है के आसमा में सुराख़ हो नहीं सकता
ReplyDeleteएक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो ......
आपने इस जानकारी से मन खुस कर दिया
ऐसे जुनूनी लोगों को आगे लाना होगा ......
अली साहब की जांबाजी और जज्बे को सलाम.
ReplyDeleteसौ प्रतिशत सहमत हूँ आपसे..कोई कार्य असंभव नहीं बस करने की नियत होनी चाहिए ..सुन्दर आलेख बधाई
ReplyDeleteजितना खूबसूरत आपके ब्लाग है उतना ही खूबसूरत ब्लाग का सब्जेक्ट भी है। दिल खुश हो गया इसे देखकर। एक-दो स्टोरी ही पढ़ पाया हूं अभी। समय मिलने पर बाकी भी पढ़ना चाहूंगा। आपसे बात करने की इच्छा है। अगर अपना मोबाइल नंबर दें दें तो आभारी रहूंगा। मेरा पता है xaption@gmail.com ब्लाग पर मेरा नंबर भी है। मुमकिन हो तो एसएमएस भी कर सकते हैं।
ReplyDeleteshaayad junoon isi kaa naam hai.........aadmi ke bheetar ik aisee tamanna se paida ho jaaye.......ki vo use poora karke hi chain le paaye.......!!
ReplyDeleteइसे ही कहते हैं जहॉं चाह, वहॉं राह।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
बहुत बढ़िया लिखा है आपने !
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