Tuesday, January 27, 2009

एक आम इंसान की कहानी

एक आम इंसान की कहानी
पीलीभीत जिले के माधोटांडा के एक गुमनाम गाँव नौजल्हा नक्तहा के शंकर बर्कंदाज़ में पेड़ के पत्ते की पिपहरी बनाकर उससे शहनाई जैसी मधुर धुन निकलने की अनोखी प्रतिभा है. कला की साधना के अलावा कर्मठता और राष्ट्रीयता शंकर के व्यक्तित्व के दूसरे पहलु हैं. यह बात वन विभाग के अधिकारी भी बहतर ढंग से जानते हैं कि शंकर द्वारा किया गया वृक्षारोपड़ वन विभाग के भी वृक्षारोपड़ से बहतर साबित हुआ. ४२ वर्षीय शंकर की जीविका का मध्यम तो छोटी सी चाय की दुकान है, लेकिन इस इलाके में सैकडों हजारों लोगों की तरह उसने अपनी ज़िन्दगी का दायरा सिर्फ़ पेट भरने तक ही सीमित नही रखा. लेकिन यह उसका दुर्भाग्य है कि उसकी कला एक छोटे से गांव तक ही सीमित है. उसने अपनी कला का सृजन जंगलों में ही किया।
तीन दशक पहले जब वो किसी किसान के यहाँ नौकरी करने जाते थे. तो उन्हें जानवरों को चराने जंगल में ले जाना पड़ता था. यहाँ उन्होंने खाली समय में खेल खेल में पेड़ के पत्तों से पिपहरी बनाकर धुनें निकलने की शुरुआत की. शुरू में तो पिपहरी से सीटी जैसी आवाज़ निकलती थी लेकिन उन्हें महसूस हुआ कि इस से और बेहतर धुनें भी निकली जा सकती हैं. कई साल की कोशिश के बाद उन्होंने यह भी कर दिखाया। अब वह पिपहरी से शहनाई जैसी धुनें भी निकल लेते हैं. उनकी धुनें लोगों को मंत्रमुग्ध कर देती हैं. अब तो वह कई तरह के प्रदर्शनों में भी अपने इस हुनर का प्रदर्शन कर चुके हैं. प्रदेश की राजधानी में भी वह अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं और कई तरह के प्रशस्ति पत्र भी उन्हें मिल चुके हैं. उनकी तमन्ना राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनने की है। शंकर के व्यक्तित्व का एक और पहलु है जो उन्हें हिम्मती साबित करता है. उनकी शुरुआत हालांके कटु अनुभव से हुई लेकिन बाद में उन्होंने ख़ुद को साबित कर दिखाया. मामला कुछ यूँ था कई साल पहले वन विभाग की ज़मीन पर अतिक्रमड़ के मसले पर शंकर का विरोध वन विभाग के अधिकारियों को इस कदर नागवार गुज़रा की अधिकारियों ने उन्हें वन माफिया घोषित कर दिया. बाद में वह डी. ऍफ़. ओ. से मिले और पूर्व डी. ऍफ़. ओ की ज्यादतियों के बारे में उन्हें बताया. बाद में अधिकारियों को उनकी कला और सद्भावना ने इस कदर प्रभावित किया की उन्होंने ने उनकी ग्राम प्रधान पत्नी को ग्राम वन्य समिति का अध्यक्ष और उनको सदस्य बनाकर ५० हेक्टयेर भूमि पर वृक्षारोपड़ की ज़िम्मेदारी सौंप दी। शंकर द्वारा किया गया वृक्षारोपड़ वन विभाग के वृक्षारोपड़ से बेहतर साबित हुआ. तत्कालीन वन मंत्री राजधारी सिंह यह वृक्षारोपड़ देखने भी आए और शंकर से प्रभावित होकर उन्होंने शंकर की सराहना की