Wednesday, September 9, 2009
हादसे की शिकार जाने बचाने की मुहिम
Tuesday, June 2, 2009
एक चुनाव ऐसा भी
Sunday, April 26, 2009
वतन की याद आई तो छोड़ आये कैलिफोर्निया
वहीँ पर उन्होंने गामा बीटा रेज़ मापने वाले प्रोजेक्ट टाइप इस्पिकोस्कोपे का अविष्कार किया. वतन की याद आई तो प्रोफ़ेसर मुनीर तीसरे टर्न में अध्यापन का प्रस्ताव ठुकराकर वापस लौट आये और AMU में हेड ऑफ मेकेनिकल इंजीनियरिंग के हेड बने.
Sunday, March 1, 2009
कराटे का जूनून ले गया अमेरिका
जूनून में इन्सान क्या नहीं कर गुज़रता. इसके लिए वह कुछ भी करने से पीछे नहीं हटता. मोहम्मद हनीफ खान भी उन्हीं जुनूनियों में से एक हैं जिन्होंने जुडो व् बूडो कराटे का पूरा इल्म हासिल करने के लिए अमेरिका तक का सफ़र तय कर डाला। यह दीगर है कि इस मुकाम तक पहुँचने के लिए उन्हें अमेरिका के एक होटल तक में काम करना पड़ा.
वह शाहजहांपुर के रहने वाले हैं उम्र ३६ साल है और ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं। सिर्फ ८वी पास हैं. वह बचपन था जब उनके हाथ पैर चलने लगे थे और जिस्म को फौलादी बनाने में वह दिलचस्पी रखते थे। फ़क़त १४ साल की उम्र में कराटे सीखा और उस्ताद थे मुंबई के मुहम्मद अली। इसके बाद दिल्ली रहकर ५ साल तक जुडो सीखा और पेट भरने के लिए दिल्ली में ही चुनरी बेचीं और साइकल मिस्त्री के पास भी काम किया और फिर स्यूडो कराटे सीखा और ब्लैक बेल्ट पा लेने के बाद बॉडी बिल्डिंग का अभ्यास किया।सीखने के बाद उन्होंने लगभग ३ हज़ार लोगों को दिल्ली में हुनर सिखाया और खुद सीखने के लिए अमेरिका भी गए. अंग्रेजी न जानने के कारण उन्हें वहां बहुत दिक्क़त आई लेकिन वहां रह रहे भारतियों ने उनकी बहुत मदद की. वह बताते हैं कि "वर्ल्ड स्यूडो कराटे ओर्गानिज़शन" के बैनर तले उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला. ट्रेनर अंग्रेजी में बोलते थे उन्हें बहुत दिक्क़त आती थी इसके लिए उन्होंने कुछ शब्द रट रखे थे. उन्होंने वहां पर भी बच्चों को सिखाने का काम भी किया। अमेरिका में ५ साल रहे और ब्लैक बेल्ट लेकर ही लौटे जिसके लिए उन्हें एक होटल में भी कम करना पड़ा.
वह चाहते हैं कि जो परेशानियाँ उन्होंने उठाईं जुडो काराटे सीखें में वह दूसरो को न उठाना पड़े इसके लिए उन्होंने भारत में ही एक जुडो कराटे स्कूल भी खोला है.
कौन कहता है के आसमा में सुराख़ हो नहीं सकता
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो
Saturday, February 21, 2009
आदत
"पुनीत सहलोत की कविता"
कोशिश थी हवाओं की
हमें पत्तों की तरह उडाने की,
साजिश थी ज़माने की
हमें हर वक्त आजमाने की,
साथ किसी का मिल न सका कभी,
पर आदत हमारी थी हर बार जीत जाने की.
यकीन था ख़ुद पर,
कुछ कर गुजरने की ठानी थी,
दीवानगी जो थी मंजिल को पाने की,
उसे जूनून अपना बनाने की
आदत हमारी थी.
राह जो चुनी थी हमने अपनी,
हर मोड़ पर मिली मुश्किलों की सौगात थी,
हर छोर पर गुलशन खिला दिए हमने,
कांटो से भी यारी की,
आदत हमारी थी.
ढल चुका था सूरज,
अब चाँद से मुलाक़ात की बारी थी,
ख्वाब जो देखे थे इन बंद आंखों ने,
हकीक़त उन्हें बनाने की,
आदत हमारी थी.
Monday, February 16, 2009
गज़ल
जिसने नज़र अता की है, वो कोई नज़ारा भी देगा
छोड़ न यूँ उम्मीद का दामन, ऐसे भी मायूस न हो,
अभी छुपा है बेशक, पर वो कभी इशारा भी देगा
छोड़ अभी साहिल के सपने, मौजों से टकराता चल
यहीं हौसला नैया का, इक रोज किनारा भी देगा
दूर उफ़क से नज़र हटा मत, रात भले ये गहरी है
अंधियारों के बाद, वो तुझको सुबह का तारा भी देगा
देखे फ़कत सराब, मगर यूँ मूँद न तरसी आँखों को
प्यास का ये जज़्बा सहरा में, जल की धारा भी देगा
लाख मिटाए वक्त, तू अपनी कोशिश को जिंदा रखना,
हार का ये अपमान ही इक दिन, जीत का नारा भी देगा
साकी की नज़रें ही पीने वालों की तकदीरें हैं
करता है जो जाम फ़ना, वो जाम सहारा भी देगा
Sunday, February 8, 2009
वक़्त की नफासत
जीवन मर्यादाएं
धूसर धुन्धल चित्र लिए
हस्तरेखाओं की तंग घाटियों में
हिचकोले खाती रहीं.....
ऊबड़-खाबड़
बीहड़ों में भटकती
गहरी निस्सारता लेकर
कैद में छटपटाती
आंखों में कातरता
भय और बेबसी की
अवांछित भीड़ लिए
इक तारीकी पूरे वजूद में
उतरती रही ......
वक्त नफ़ासत पूर्ण तरीके से
सीढ़ियों पर बैठा
तस्वीर बनाता रहा ...
तारों को
छू पाने की कोशिश में
न जाने कितने लंबे समय
और संघर्षों से
गुजर जाना पड़ा .....
आज मैंने
अंधियारों को चीरकर
चाँद से बातें करना
सीख लिया है
रातों को आती है चाँदनी
दूर पुरनूर वादियों की
गहरी तलहटी से
दिखलाती है मुझे
शिलाओं का नृत्य करना
उच्छवासों से पर्वतों का थिरकना
समुंदरी लहरों के बीच
सीपी में बैठी एक बूंद का
मोती बन जाना
उड़ते हुए पन्ने में
किसी नज़्म का
चुपचाप आकर
मेरी गोद में
गिर जाना
आज जब
दूर दरख्तों से
छनकर आती धूप
थपथपाती है पीठ मेरी
धैर्य सहलाता है घाव
हवाएं शंखनाद करतीं हैं
तब मैं ....
वे तमाम तपते हर्फ़
तुम्हारी हथेली पे रख
पूछती हूँ
उन सारे सवालों के
जवाब ...........!!
Monday, February 2, 2009
ऐसे तय किया कामयाबी का सफर
सोनी कम्पनी ने उनकी सीडी रिलीज़ की महफिले बग़दाद. इसी की एक परोडी है. नूरे इलाही. दूसरी है बेबसी अच्छी लगी और मसर्राते जाने तमन्ना और इसके बाद उनकी एक के बाद एक सीडी रिलीज़ हो रही है. फिर तो चल पड़ा सिलसिला. कलियर शरीफ पर दर्शन कुमार को कोजी की आवाज़ कुछ जादुई लगी. कैसेट रिलीज़ हुई मेरे सबीर करम हो करम. बदायूं के ही फनकार तस्लीम आरिफ भी इसमे साथ में हैं.तीसरी कैसेट भी टीसीरीज़ से जरी हुई खुआजा पिया की शान निराली. यह वीसीडी दुनिया के लगभग सभी मुस्लिम देशों में बिक रही. इसके साथ ही कोजी ने कुछ भजन भी गाये है और कोजी अब बॉलीवुड के कुछ टॉप सिंगेर्स के साथ गाने की तय्यारी में हैं. वह शास्त्रीय संगीत से लेकर पॉप म्यूजिक फिल्मी गीत पंजाबी ,इंग्लिश, भजन, क़व्वाली, परोडी और अन्करिंग सभी पर कमांड रखती हैं.
Tuesday, January 27, 2009
एक आम इंसान की कहानी
तीन दशक पहले जब वो किसी किसान के यहाँ नौकरी करने जाते थे. तो उन्हें जानवरों को चराने जंगल में ले जाना पड़ता था. यहाँ उन्होंने खाली समय में खेल खेल में पेड़ के पत्तों से पिपहरी बनाकर धुनें निकलने की शुरुआत की. शुरू में तो पिपहरी से सीटी जैसी आवाज़ निकलती थी लेकिन उन्हें महसूस हुआ कि इस से और बेहतर धुनें भी निकली जा सकती हैं. कई साल की कोशिश के बाद उन्होंने यह भी कर दिखाया। अब वह पिपहरी से शहनाई जैसी धुनें भी निकल लेते हैं. उनकी धुनें लोगों को मंत्रमुग्ध कर देती हैं. अब तो वह कई तरह के प्रदर्शनों में भी अपने इस हुनर का प्रदर्शन कर चुके हैं. प्रदेश की राजधानी में भी वह अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं और कई तरह के प्रशस्ति पत्र भी उन्हें मिल चुके हैं. उनकी तमन्ना राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनने की है। शंकर के व्यक्तित्व का एक और पहलु है जो उन्हें हिम्मती साबित करता है. उनकी शुरुआत हालांके कटु अनुभव से हुई लेकिन बाद में उन्होंने ख़ुद को साबित कर दिखाया. मामला कुछ यूँ था कई साल पहले वन विभाग की ज़मीन पर अतिक्रमड़ के मसले पर शंकर का विरोध वन विभाग के अधिकारियों को इस कदर नागवार गुज़रा की अधिकारियों ने उन्हें वन माफिया घोषित कर दिया. बाद में वह डी. ऍफ़. ओ. से मिले और पूर्व डी. ऍफ़. ओ की ज्यादतियों के बारे में उन्हें बताया. बाद में अधिकारियों को उनकी कला और सद्भावना ने इस कदर प्रभावित किया की उन्होंने ने उनकी ग्राम प्रधान पत्नी को ग्राम वन्य समिति का अध्यक्ष और उनको सदस्य बनाकर ५० हेक्टयेर भूमि पर वृक्षारोपड़ की ज़िम्मेदारी सौंप दी। शंकर द्वारा किया गया वृक्षारोपड़ वन विभाग के वृक्षारोपड़ से बेहतर साबित हुआ. तत्कालीन वन मंत्री राजधारी सिंह यह वृक्षारोपड़ देखने भी आए और शंकर से प्रभावित होकर उन्होंने शंकर की सराहना की